Saindhav Review in Hindi | सैंधव रिव्यू हिंदी में
आज हम बात करने वाले हैं, पिछले हफ्ते थिएटर्स में रिलीज हुई तेलुगु एक्शन थ्रिलर फिल्म, यानी कि सैंधव के बारे में। वैसे तो अनाउंसमेंट हुई थी कि इस फिल्म को तेलुगु के साथ-साथ हिंदी भाषा में भी रिलीज करवाया जाएगा, पर पिछले हफ्ते फिल्म को हिंदी में रिलीज नहीं किया गया। शायद ये लोग एक साथ अपनी दो फिल्मों को थिएटर्स में रिलीज नहीं करवाना चाहते होंगे। तो हो सकता है कि आने वाले हफ्तों में यह फिल्म आपको थिएटर्स में हिंदी में देखने को मिल जाए।
अब अगर बात करें इस फिल्म की, तो एक बार बिना किसी एक्सपेक्टशंस के देख सकते हो, क्योंकि डेफिनेटली फिल्म के अंदर कुछ पॉजिटिव्स हैं और ओवरऑल देखा जाए तो फिल्म एक डिसेंट तरीके से इंगेज करके रखने में कामयाब रहती है। वैसे तो फिल्म को देखोगे, तो फिल्म के अंदर स्कोप जो था, एक अच्छी कमर्शियल एक्शन थ्रिलर के हिसाब से बहुत था, पर डायरेक्टर साहब जो है, काफी जगहों पर चीजों को एग्जीक्यूट करने में फेल हो जाते हैं।
और जो चीजें फिल्म के हित में काम करती है, उनके बारे में अगर मैं बात करूं, तो फिल्म की जो सबसे बड़ी हाईलाइट या फिर सबसे बड़ा पॉजिटिव पॉइंट यहां पर साबित होते हैं, वो है नवाजुद्दीन सिद्दीकी। फिल्म में अगर कुछ भी एंटरटेनिंग है, जो आपको फिल्म के दौरान कुछ फन या फिर एंटरटेनमेंट प्रोवाइड करेगा, तो वो उनका ही कैरेक्टर है।
उनकी बात करने का तरीका, वो सही में काफी मजेदार था। जो उन्हें भले ही कोई खतरनाक विलन के तौर पे प्रेजेंट ना करता हो, बट डेफिनेटली एक फनी विलन के तौर पे जरूर प्रेजेंट करता है, जो बीच-बीच में फिल्म के दौरान हंसाने में कामयाब रहते हैं।
Best Sequence of Venkatesh | वेंकटेश का मजेदार सीक्वेंस
फिल्म का फर्स्ट हाफ भी देखा जाए, तो ठीक-ठाक तरीके से इंगेजिंग साबित होता है। वेंकटेश, श्रद्धा, श्रीनाथ और जो बच्ची है, इन तीनों के बीच का जो रिलेशन है, जो इमोशन है, वो काफी हद तक फर्स्ट हाफ में काम करता हुआ नजर आता है। फर्स्ट हाफ में एक स्क्रैपयार्ड के अंदर, जो है वेंकटेश का एक फाइट सीक्वेंस है, जो कि अगेन मैं कहूंगा कि काफी अच्छा था। उसके बाद हालांकि, ट्रेलर में दिखा दिया गया था कि यहां पर जो मेन मुद्दा है, वो 17 करोड़ की उस इंजेक्शन को लेकर ही होने वाला है।
तो वहां तक फिल्म जब तक पहुंचती है, वहां तक फिल्म जो है, काफी एक अच्छी खासी फिल्म नजर आ रही होती है। एक भरोसा मिलता है कि चलो हां, यहां तक सब कुछ ठीक-ठाक था, अब जो है सेकंड हाफ में जो है कुछ धमाका होने वाला है। पर दुख की बात यह है कि फिल्म का सेकंड हाफ, फर्स्ट हाफ के मुकाबले, और ज्यादा कमजोर नजर आने लगता है। जहां पर एक एक्शन थ्रिलर के हिसाब से, फिल्म का जो थ्रिलर वाला पोर्शन है, वो सेकंड हाफ में ही स्टार्ट होता है पर वो थ्रिल जो है, कहीं पर नजर नहीं आता है। पूरा का पूरा एक फ्लैट स्क्रीन प्ले देखने को मिलता है, और जिसके पीछे का सबसे बड़ा कारण जो था, कि यहां पर ये जो 17 करोड़ की जो इंजेक्शन है, इसकी रकम चुकाने के लिए वेंकटेश के कैरेक्टर, यानी कि साइको को, जो काम दिया जाता है, ना वो काम कहीं पर भी हमें जो है, फील नहीं होता है।
Best Task of Venkatesh | वेंकटेश का मजेदार टास्क
ऑलरेडी फर्स्ट हाफ के अंदर उसे जिस तरीके से सेट किया गया है, उसके कैरेक्टर को, बाकी दूसरे कैरेक्टर्स उससे जिस तरीके से खौफ खाते हैं, उन्हें देखकर लगता ही नहीं है कि यहां पर वेंकटेश के लिए वो टास्क जो है, कहीं पर मुश्किल होने वाला है। तो जो क्वेश्चन मार्क खड़ा होना चाहिए था, कि क्या ये बंदा इसे पूरा कर पाएगा या नहीं, वो जो है यहां पर बन ही नहीं पाता है।
बाद में जो है, थोड़ा बहुत इधर-उधर से जो है, यहां पर खींच टान के जो है चीजों को मुश्किल बनाने की कोशिश की गई है, तो उस कारण से फिल्म जो है, कह सकते हैं कि एक डिसेंट तरीके से इंगेज साबित हो जाती है, पर जो थ्रिल होना चाहिए था, वहां पर वो पूरी तरीके से मिसिंग नजर आता है।फिल्म के सेकंड हाफ में, नवाजुद्दीन का एक डायलॉग आता है, जहां पर वो बोलते हैं कि, “यहां पर हर कोई, जो है, हीरो को एलिवेशन देने में लगा पड़ा हुआ है, पर सबसे हंसी की बात यह है कि, यहां पर वो जो एलिवेशन है, पूरी फिल्म के अंदर कहीं पर भी जो है, ठीक तरीके से फील ही नहीं होता है।
सिर्फ क्लाइमैक्स की अगर बात करूं, तो वहां पर एक आद पोर्शन है, जहां पर इमोशंस के कारण, जो है, जो एलिवेशन है, वो थोड़ा सा फील हो जाता है। अदर वाइज, फिल्म में जितने भी हाई मूवमेंट्स रखे गए हैं, पर उनमें से कुछ भी जो है, काम करता हुआ नजर ही नहीं आता है। जिसके पीछे का सबसे बड़ा कारण तो है कि, कमजोर स्टेजिंग काफी जगहों पर, जो सींस हैं, उनको उस तरीके से स्टेज ही नहीं किया गया है। और दूसरा जो सबसे बड़ा फैक्टर, जो इस पूरी फिल्म को काफी जगहों पर कमजोर कर जाती है, वो है इस फिल्म का बैक म्यूजिक। फिल्म में, बैकग्राउंड म्यूजिक किसी एक सीन को भी, जो है, एलीवेट नहीं कर पाता है। उल्टा, कुछ जगहों पर, ऐसा स्कोर सुनने को मिलता है जो, कि बहुत ही जेनरिक फील कराता है।
Introduced the Fictional City | फिक्शनल सिटी को इंट्रोड्यूस किया
क्लाइमैक्स के अंदर, जो कह सकते हैं कि, इमोशंस आने चाहिए थे, गुस्सा, दुख, एक साथ ब्लेंड होके, अब म्यूजिक के थ्रू, जिस तरीके से बाहर आना चाहिए था, वो जो है, कहीं पर आ नहीं पाता है। इवन, जो एलीवेशंस हैं, जो स्टाइलाइज तरीके से कुछ सींस को डिजाइन किया गया है, कहीं पर भी म्यूजिक जो है, उन सींस को सपोर्ट ही नहीं कर पाता है। सिनेमेट ग्राफी, फिल्म की काफी अच्छी है। कुछ एक्शन सींस के दौरान, कैमरा वर्क भी, जो है, काफी सॉलिड हमें यहां पर देखने को मिलता है। डायरेक्टर ने यहां पर, फिल्म के अंदर, एक फिक्शनल सिटी को हमारे सामने इंट्रोड्यूस किया है, पर वो सिटी भी, जो है, कुछ बहुत अ नया प्रोवाइड नहीं करती है।
ना ही उसे, कुछ बहुत बेहतरीन तरीके से, यहां पर, ओवरऑल फिल्म के अंदर, डेवलप किया गया है। हां, कुछ जगहों पर, आपको गाड़ियों के नंबर वगैरह में, जो है, वो सिटी के हिसाब से नंबर प्लेट वगैरह देखने को मिल जाएगी। बाकी, यहां पर, वेंकटेश की बेटी, जिस बीमारी से जूझ रही है, वो बीमारी से, शहर के अंदर, जो है, और भी काफी सारे, कुछ 329 बच्चे, जो हैं, और जूझ रहे होते हैं, तो वो नंबर्स, यहां पर, उस शहर के अंदर, देखने को मिलते हैं।
तो, ऐसी कुछ चीजें हैं। फिल्म में, वेंकटेश की परफॉर्मेंस, सॉलिड है। एक्शन मास अवतार के अंदर, उनका काम, देखते ही बनता है। वो फन भी जो है वो नजर नहीं आ आएगा तो उसके लिए आपको शायद तेलुगु वर्जन ही देखना पड़े बाकी अगर ये लोग हिंदी में कुछ एक्सपेरिमेंट करते हैं तो वो अलग बात है